उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में स्थित कुमाऊं संभाग में एक विशेष परम्परागत परिधान, रंगवाली पिछौड़ा, उस स्थान की जीवन शैली और समृद्धि से जुड़ा हुआ है। यह परिधान न केवल धार्मिक और सामाजिक उत्सवों में धारावाहिकता लाता है बल्कि यहां के स्थानीय समुदाय की विशिष्ट संस्कृति को भी प्रतिबिंबित करता है।
रंगवाली पिछौड़ा उत्तराखंड के कुमाऊं संभाग की एक प्रमुख परम्परागत पहनावा है, जिसे विशेष धार्मिक और सामाजिक अवसरों में ओढ़ा जाता है। इस परिधान की महत्वपूर्णता उत्सवों में उन्नति, शुभता, और स्थानीय परंपराओं का प्रतिरूपण करने में होती है।
रंगवाली पिछौड़ा कुमाऊं की परम्परागत सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा बना हुआ है और विशेषकर कुमाऊं की स्त्रियों के लिए इसका महत्व अधिक है। यह परिधान न केवल शादी के अवसर पर बल्कि और भी अनेक सामाजिक और धार्मिक समारोहों में पहना जाता है और इससे स्त्रियों को समृद्धि और परिवारिक खुशी का प्रतीक मिलता है।
रंगवाली पिछौड़ा को स्वस्थ वन्य रंजकों से रंगा जाता है और इसमें सुर्ख लाल और केसरिया रंग का प्रमुख उपयोग होता है। इन रंगों को भारतीय सांस्कृतिक में मांगल्यक रंग माना जाता है और इनका संयोजन स्त्री को उसके वैवाहिक जीवन में सौभाग्य और सुख की प्राप्ति में सहायक होता है।
रंगवाली पिछौड़ा का निर्माण हस्तनिर्मित होता है और इस पर पारंपरिक लोक-कला का चित्रण किया जाता है। इसमें बूटियां, स्वास्तिक, और ओम का आलेखन किया जाता है, जो महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रतीक हैं। इन प्रतीकों का संयोजन स्त्री की सम्पन्नता, उर्वरता, और परिवारिक खुशी को प्रतिरूपित करता है।
रंगवाली पिछौड़ा का प्रचलन केवल उत्तराखंड में ही है, लेकिन इसकी सुन्दरता और सांस्कृतिक महत्व ने इसे बाहरी लोगों के बीच भी लोकप्रिय बनाया हुआ है।