Saturday, July 27, 2024
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मानसून की दस्तक से आखिर क्यों सिहर रहे है उत्तरकाशी के स्थानीय, पढ़े ये रिपोर्ट

देहरादून(उत्तराखंड): देवभूमि उत्तराखंड में जल्द ही मानसून दस्तक देने वाला है. उम्मीद जताई जा रही है कि 25 जून तक मानसून उत्तराखंड में सही तरीके से दस्तक दे देगा. हालांकि, 22 जून से लेकर 26 जून तक प्री मानसून बरसात को लेकर ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया है. उत्तराखंड में बारिश के कारण अच्छा खासा नुकसान होता है. बरसात में यहां नदी नाले उफान पर आ जाते हैं. पहाड़ी जिलों में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ जाती हैं. जहां पूरा प्रदेश मानसून का इंतजार कर रहा है, वहीं, जोशीमठ के रहवासी बारिश के ख्याल से सिहर गये हैं.

जोशीमठ में मानसून में बढ़ेगा भू धंसावजोशीमठ में 6 महीने पहले लगभग 860 मकानों में दरारें आई. यहां की सड़कें धंस गई. जिसके कारण शासन-प्रशासन ने यहां डेरा डाला था. तब पूरी प्रशासनिक अमला जोशीमठ को बचाने की जद्दोजहद में जुट गया था. तब इस शहर को काफी हद तक खाली कराकर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर रुकवाया गया, लेकिन अब जिन जगहों पर लोग रुके हैं वहां बरसात से कभी भी स्थिति बिगड़ सकती है.

क्यों धंस रहा जोशीमठ:हर साल उत्तराखंड की बारिश खासकर पहाड़ों में बेहद कहर बरपाती है. यहां सड़के बंद रहती हैं. नदियां उफान पर होती हैं. सड़क से लेकर गांव तक के मार्ग बंद हो जाते हैं. यानी हर साल उत्तराखंड से जो खबरें आती हैं उससे ना केवल उत्तराखंड बल्कि देश की चिंताएं भी बढ़ जाती हैं. 25 जून के बाद उत्तराखंड में मानसून दस्तक देने वाला है. ऐसे में संभावनाएं जताई जा रही हैं कि जोशीमठ में जो दरारें मकानों और सड़कों पर आई हैं वो पानी की तेज गति से और चौड़ी हो सकती हैं. भूवैज्ञानिक और तमाम जानकार आज से 6 महीने पहले इसी खतरे का अंदेशा जता रहे थे. वैज्ञानिकों ने तब भी कहा था कि अभी तो सिर्फ दरारें आई हैं, लेकिन आने वाले मानसून में जोशीमठ के हालात क्या होंगे इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है. जोशीमठ शहर का एक बड़ा हिस्सा धीरे-धीरे नीचे की तरफ धंस रहा है. उसके नीचे खिसकने की गति मानसून में और भी तेज हो सकती है. इतना ही नहीं 4 दिन पहले जोशीमठ में हुई बरसात के बाद कई जगहों पर दरारें चौड़ी होने की खबरें आई हैं. जिसमें सिंहधार क्षेत्र के साथ-साथ सुनील वार्ड और पुनागेर तोक शामिल हैं. इन क्षेत्रों में मात्र 1 दिन की बारिश से ही असर दिखने लगा है. इतना ही नहीं जोशीमठ और बदरीनाथ हाईवे पर भी गड्ढा बन गया है.

जोशीमठ में होती है सबसे ज्यादा बारिश: गढ़वाल क्षेत्र की अगर बात करें तो जोशीमठ में सबसे अधिक बरसात होती है. जोशीमठ का एक बाहरी हिस्सा हिमालय की दक्षिणी ढलानों पर है. और जब पहाड़ों में बारिश होती है तो पानी इन ढलानों से होकर नदियों की तरफ पहुंचता है. एक आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 1162.7 मिमी बारिश होती है. इसमें चमोली जिले में ही 1230.8 मिमी पूरे साल में बादल बरस जाते हैं. साल 2022 के आंकड़े भी यही कहते हैं की जोशीमठ में सबसे अधिक बारिश हुई थी. वैज्ञानिक और जिला प्रशासन बारिश आने का भी इंतजार कर रहा है. दरअसल, इस बात को भी देखा जाएगा कि 1.2 बारिश में किस तरह का असर जोशीमठ शहर पर दिखाई देता है. उसके अनुसार ही आगे की रणनीति तैयार की जाएगी. इसमें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन की टीम और केंद्रीय गृह मंत्रालय की टीम के साथ साथ जिला प्रशासन भी इस पर नजर बनाए हुए है.जोशीमठ भू धंसाव के बाद सरकार भी असमंजस की स्थिति में है.

बारिश के बाद मालूम होगा कितना खतरनाक है जोशीमठ: हालांकि, आपदा प्रबंधन विभाग जोशीमठ को लेकर इसलिए भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहता है क्योंकि राज्य में इस समय चार धाम यात्रा चल रही है. हजारों लाखों यात्री रोजाना उत्तराखंड आ रहे हैं. इसके साथ ही मानसून में किसी तरह की कोई अप्रिय घटना जोशीमठ की आस पास के इलाकों में ना हो इसको लेकर भी जोशीमठ में संयुक्त कंट्रोल रूम तैयार कर दिए गए हैं. जिससे आपदा से निपटने के लिए सभी विभाग एकजुट होकर काम करेंगे. इसमें एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आपदा प्रबंधन विभाग, दूरसंचार विभाग के साथ-साथ पीडब्ल्यूडी विभाग भी शामिल है. ये टीम छोटी-छोटी घटनाओं और सूचनाओं पर बारीकी से नजर रखेगी. जिससे किसी भी अप्रिय घटना होने पर तुरंत राहत और बचाव कार्य के साथ-साथ एक्शन लिया जा सके. जोशीमठ में खाने-पीने के साथ-साथ दवाई, पानी का भी भंडारण किया जा रहा है. जिससे अगर सड़क बंद होती है तो भी किसी तरह की कोई दिक्कत न हो ऐसे इंतजाम किये गये हैं.

जोशीमठ के खतरनाक जोन: सरकार ने बदरीनाथ धाम में उमड़ रही भीड़ को देखते हुए बदरीनाथ हाईवे पर 20 भूस्खलन और एक दर्जन से ज्यादा भू धंसाव के स्थान चिन्हित किए हैं . इन सभी की लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है. इस बात पर भी गौर किया जा रहा है कि यात्रियों की भीड़ के दौरान किसी तरह का कोई हादसा यहां न हो. जैसे ही जोशीमठ में मौसम खराब होता है, या बूंदाबांदी शुरू होती है वैसे ही प्रशासन की गतिविधियां भी इन जगहों पर बढ़ जाती हैं. प्रशासन ने अपनी जांच के बाद जिन जगहों को सबसे अधिक जोशीमठ में संवेदनशील माना है उनमें मैठाना,चमोली,नंदप्रयाग,लांबा गढ़ ,चाढा, हेलंग चाढ़ा, जेपी पुल तक की दूरी हनुमान चट्टी रांगड बैंड के समीप तक, भनार पानी, विष्णु प्रयाग का तैंय पुल, सहित कुछ और जगहें शामिल हैं.

भू वैज्ञानिक जाता रहे चिंता: भू वैज्ञानिक बीडी जोशी की मानें तो जोशीमठ में बारिश का असर जरूर दिखाई देगा. पानी कहीं भी बरसे वह अपना रास्ता जरूर बनाएगा. दिक्कत यह भी है कि अगर प्रशासन ने ऊपरी तौर पर दरारों को भरने का काम किया है तो बारिश इसके बाद भी असर डालेगी. जितनी तेज बारिश होगी उतनी ही तेज गति से सड़कों और मकानों में दरारों की घटनाएं सामने आएंगी. इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि हम सिर्फ मकानों और सड़कों पर ही फोकस ना करेंं, जोशीमठ के आसपास स्थित पहाड़ों का भी विशेष ध्यान रखना होगा. अधिक बारिश की वजह से पहाड़ियां दरकती हैं. जिससे काफी नुकसान होता है.J

जोशीमठ भू-धंसाव के पीछे अलकनंदा: जोशीमठ में प्रकृति ने जो क्रूरता दिखाई है, उसमें अगर मानवीय छेड़छाड़ वजह मानी जा रही है तो, वही अलकनंदा नदी भी इसमें बराबरी का काम कर रही है. लगातार हो रहे काम की वजह से नदी का प्रवाह छोटा होता जा रहा है. यही कारण है कि अलकनंदा नदी जोशीमठ के पर्वतों को लगातार काटकर बहने की कोशिश सालों से कर रही है. अब तक जितने भी अध्ययन या एक्सपर्ट की टीम जोशीमठ में गई है. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में यही बताया है कि जोशीमठ की जड़ को अलकनंदा नदी लगातार काट रही है और यही भूस्खलन की मुख्य वजह मानी जा रही है.

पहाड़ों पर दबाव से जोशीमठ को खतरा: जोशीमठ शहर में लगातार दबाव के चलते पर्वत नीचे खिसक रहे हैं. नदी का मुहाना छोटा होने की वजह से नदी अब अपना रास्ता तय करने के लिए सालों से इस पर्वत को काट रही है. ऐसे में सरकार के लिए बड़ी चुनौती है कि जोशीमठ शहर को कैसे बचाया जाए ? कहीं ऐसा तो नहीं कि अभी तो सिर्फ 20% शहर के ऊपर ही आफत आई है. ऐसा ही नदी का प्रवाह पर्वत की जड़ों को काटता रहा तो, बाकी शहर के लिए भी आने वाले सालों में मुसीबत हो सकती है. ऐसे में राज्य सरकार को एक्सपर्ट्स ने यह सलाह दी है कि इससे बचने के लिए नदी किनारे एक सुरक्षा दीवार बनानी होगी.

फिलहाल जोशीमठ में इतने मकान हैं खाली: बता दें उत्तराखंड के जोशीमठ में आई 6 महीने पहले आपदा में 860 से अधिक मकानों को खाली करवाया गया. इसमें 181 मकानों पर लाल निशान लगाये गये. यानी इनको गिराया जाएगा. अब तक 88 परिवारों को मकान का मुआवजा दिया गया है. जिसके लिए लगभग ₹20 करोड़ रुपया धनराशि जारी की गई है. सरकार ने जोशीमठ से लगभग 14 किलोमीटर दूर लोगों के रहने की व्यवस्था की है. इसके बाद भी कुछ लोग यहां जाना नहीं चाहते. उनके मवेशी, बच्चे सभी जोशीमठ में हैं, जिसके कारण वे यहां से हटने को तैयार नहीं हैं.

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